मंजुला दुर्भाग्य या सौभाग्य भाग(11)
आज मंजुला की आँखों में नींद न थी। थी तो एक दृण निश्चय की झलक आज ,दीपक से पूछकर ही रहेगी वो रोज आधी रात को कहाँ और क्यों जाता है।
तभी किसी के कदमों की आहट सुनाई दी, और मंजुला का दिल धड़क उठा, शायद आ गए, मन ही मन एक अंतर्द्वंद्व चल रहा पूंछू न पूंछू, तभी दीपक आहिस्ता से अपना बैग रखकर सोफे पर बैठ गया।
फिर हल्के से सोफे पर लेट गया ।
सुनिए-- "कहाँ से आ रहे आप इतनी रात को रोज कहाँ जाते और क्यों"" बताओ मुझे।
मंजुला ने सवालों की झड़ी लगा दी , सुनते ही दीपक को पसीना आ गया ,,
मैने कुछ पूंछा आपसे,,
सुबह बात करना मुझे नींद आ रही कहकर दीपक ने बात टालनी चाहीं।
पर आज वो मंजू के निश्चय से अनजान था।
मंजुला वहीं सोफे पर उससे सटकर बैठ गयी, मुझे अभी जानना है बताओ, बरना मै अम्माँ को कहती जाकर।
अम्माँ का नाम सुनते ही दीपक सकपका गया।
मंजू मेरी बात सुनो ,बड़े प्यार से बोला "तुम मेरी अच्छी बीबी हो न प्लीज कुछ दिन का समय दे दो मै सब ठीक कर दुंगा,
जैसा कहोगी वैसा ही,,
कौन बीबी कैसी बीबी, कोई अपनी बीबी को पहली रात को अकेले छोड़कर जाता क्या,????
कहते कहते उसका गला भर गया।
दीपक को बहुत बुरा लग रहा था कि जब से व्याह कर के लाया रोज रुलाता वो मंजुला को वज खुदको अपराधी महसूस कर रहा था।
सुनो मंजू बताता सब तुम रोना मत।
मैं अपने दोस्तों के साथ जाता नहर पर घूमने ,अच्छा लगता सभी जाते है , अपनी कसम और कोई बात नही ,, तेरी कसम मंजू सिसके जा रही थी उसे पता था वो झूठ कह रहा है , पर रात में बात बढ़ाना नही चाहती थी चुपचाप लेट गयी पलंग पर, अभी भी रोना बन्द न हुआ उसका, मंजुला की एक एक सिसकी दीपक को बेचैन कर रही थी आखिर दीपक उठकर आ गया पलंग पर , अब रो क्यों रही तुम कल से नही जाऊँगा कसम से ,, ।
मंजुला और जोर से रोने लगी , दीपक ने उसे गले से लगा लिया , और बाहर चाँदनी से भरा शीतलता देता वातावरण कुछ ज्यादा ही निखर गया , जब चाँदनी की किरण मंजुला के मासूम चेहरे पर पड़ी , तब दीपक का विश्वामित्र सा मन मंजुला के अनुपम छटा मे अनवरत वह गया। सुबह जब मंजुला उठी तो उसके चेहरे पर अजब सी चमक और आँखों में गजब की संतुष्टि थी।
जब आईने में उसने खुद को निहारा , फिर एक नजर पलंग पर सोए दीपक पर डाली तो खुद से ही शरमा गयी।
फिर नित्यकाम से निपटकर जब वापस आई तो देखा दीपक अभी भी सो रहा था।
उसने अपने भीगे बालों को झटका तो बूंदे दीपक के चेहरे पर पड़ गयीं, वह झल्ला गया, कुछ कहना ही चाहता था नजर आईने के सामने खड़ी मंजुला पर पड़ी तो उसके सौन्दर्य को अपलक निहारता रहा,,
मंजुला इस सब से अनजान अपने साज श्रंगार में व्यस्त थी , आज पहले से ज्यादा समय लिया मंजुला ने, और चेहरे पर गजब की चमक थी , हाव भाव में गजब की रौनक थी।
तभी रचना आ गयी ,, भाभी जल्दी चलो आज आपकी पहली रसोई है,
' जी दीदी, आती हूँ, रचना के जाने के बाद उसने दीपक को आवाज दी उठ जाइए ,, दिन चढ़ आया।
दीपक जग रहा था पर जानबूझकर न उठा।
तभी उसने दीपक की चादर खींच ली ।
दीपक ने बनाबटी पन से कहा अरे सोने दो मुझे ,
नही दिन चढ़ गया,आप तो बहुत जल्दी उठ जाते फिर आज क्या हुआ जो नही उठ रहे।
अन क्या हुआ ,, मुझसे नही खुद से पूछ लो,, दीपक की बात से उसका चेहरा सुर्ख हो गया, वो शरमाकर कमरे से बाहर चली गयी दीपक बुलाता रह गया।
आज उसकी पहली रसोई थी यो सारे काम बहुत ध्यान से किए खीर पूड़ी, सब्जी सभी बन रहा था।
तभी रचना रसोई में आकर बोली वाह ! कितनी अच्छी खुशबू आ रही खाने से मुझे तो तेज भूख लग रही है जल्दी भोग लगाओ माँ।
हां अभी लगाती हूँ पहले तू सबको बुला ल खाने केलिए।
सभी आ गए , जो भी खाना खाता बिना तारीफ किए नही रह पाता ,,
दीपक ने खाना खाया पर कुछ बोला नही , फिर बैग उठाकर कॉलेज चला गया।
मंजुला भी आज थक गई थी सो खाना खाकर कमरे में चली गयी आराम करने न जाने कब आँख लग गयी।
दीपक कॉलेज से लौटा तो वेसुध सोयी मंजुला को देखकर मुस्कुरा उठा , आज थक गयी है, काम भी तो बहुत किया सुबह से, फिर बैग से एक बॉक्स निकालकर उसके सिरहाने रख दिया, तभी अम्माँ किसी से कह रहीं थी आज पूर्णिमा है, यह सुनते ही उसके अन्दर एक धमाका हुआ और आँखे भीग गयीं।
और वह वहीं पलंग पर जोर से बैठ गया , तभी मंजुला की आँख खुल गयी अरे!आप कब आए???
सॉरी ,वो मेरी बजह से तुम्हारी नींद टूट गयी ।
नही ,,
" मंजुला कुछ कहना है तुमसे,,
कहिए,
एक कप चाय पिला दो,,
जी अभी लाती,, पर मंजुला समझ गई बात कुछ और हैं, वह उठकर चाय बनाने चली गई।
तभी दीपक की आँखों से आसुँ गिरने लगे,, क्या करूँ मैं ,क्या न करूं,
नही मैं अपने कार्य को अधूरा नही छोड़ सकता ,पीछे नहीं हट सकता।
तभी मंजुला चाय बना लायी ,, तब तक वह खुदको सभाल चुका था चाय देकर मंजुला बाहर जाने को हुई दीपक ने उसे आवाज दी।
मंजू मेरे पास बैठो ।
मंजुला पहलीबार दीपक से इस तरह सुनकर ठिठक गयी और बहुत सदे कदमो से उसके पास बैठ गयी।
देखो उस बॉक्स में कुछ है तुम्हारे लिए,, देखकर बताओ कैसा है।
मंजुला ने बॉक्स खोला बहुत सुंदर चार कंगन थे काँच के,
अरे वाह बहुत सुंदर हैं यह तो।
,,तुम्हे अच्छे लगे,,
बहुत,, पर क्यों लाए,
वो तुमने सुबह खाना बनाया तो उसी के लिए ।
धन्यवाद जी,, कहकर मंजुला ने कंगन हाथों में पहन लिए और बचपने से बोली हाथ उसकी तरफ करके अब बताओ कैसे लग रहे।
दीपक ने शरारत से उसे गले लगा लिया , बहुत सुंदर लग रहे अब इनकी
कीमत बड़ गयी इनकी अब।
मंजुला शरमाकर उसके सीने में छुप गयी ,, मंजुला को अपने करीब पाकर , दीपक की पलकें फिर भीग गयीं।
तभी किसी की आहट पाकर मंजुला परे हट गई।
दीपक मुस्कुराता बाहर चला गया।
रात के सारे काम से निपटकर मंजुला कमरे में आ गयी ,, 10 बज गए पर दीपक अभी नही आया ,, यही सोच रही थी तभी दीपक आ गया ,अरे सो गई तुम,,
नही आपका इंतजार कर रही थी कहाँ थे आप।
अरे! इतना गुस्सा।
नही ,,
तभी दीपक उसके पास आ गया और बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया , मंजुला सुन्दर सपने आँखों मे सजाए उसकी वाहों में सो गई।
रात्रि के दूसरे पहर था जब मंजुला ने करबट बदली यह क्या पास की जगह खाली थी ,, झट से उसकीं नींद टूट गई, दीपक बाबू कहाँ गए,,
उसने सारे कमरे में देखा पर वो नही था ,, मंजुला की आँखें फिर भीग गयीं।
Seema Priyadarshini sahay
10-Nov-2021 05:36 PM
बहुत खूबसूरत
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Khushi jha
10-Nov-2021 02:01 PM
वाह बेहतरीन
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